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-: संपादक मंडल :-





प्रमुख संपादक : संजीव वर्मा 'सलिल'
संपादक : संजय वर्मा, अशोक नौगरैया, सुरेन्द्र पवार


Thursday 15 September, 2022

अभियंता दिवस

 अभियंता दिवस

अभियंता जागो

१. हर नगर तथ अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की मूर्ति स्थापित हो।

२. अभियंता कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जाए।

३. हर अभियांत्रिकी महाविद्यालय/पॉलिटेक्निक में सर्वोच्च अंक अर्जित करने वाले छात्र को एम् वी पदक प्रदान किया जाए।

४. निर्माण कार्यों में ठेकेदारी के लिए अभियांत्रिकी में डिग्री/डिप्लोमा अनिवार्य हो ताकि कार्यों की गुणवत्ता में सुधार हो।

५. डिग्री/डिप्लोमा अभियंताओं को व्यवसाय आरंभ करने के लिए ब्याजमुक्त कर्ज उपलब्ध कराया जाए तथा निविदा कार्यों में वरीयता दी जाए।

६. साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत अभियंताओं को तकनीकी विभागों की परामर्शदात्री समितियों, जांच समितियों आदि में वरीयता दी जाए ताकि वे तकनीकी और सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से मददगार हो सकें।

७. राष्ट्रीय सम्मान तथा उपाधि वितरण में अभियंता संवर्ग की उपेक्षा बंद कर अवदान का सम्यक मूल्याङ्कन कर वरीयता दी जाए।

संजीव वर्मा

सभापति इंजीनियर्स फोरम (भारत)

९४२५१८३२४४

***

देश को किताबी नहीं व्यावहारिक अभियंता चाहिए - इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल'


जबलपुर, १५ अगस्त २०२१। भारत रत्न सर मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया जी के १६२ जन्म दिवस पर स्थानीय तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी में अपराह्न २ बजे से ''संरचना २०२२'' का आयोजन इंजी. संजीव वर्मा 'सलिल', अध्यक्ष इंडियन जिओटेक्नीकल सोसायटी जबलपुर चैप्टर के मुख्यातिथ्य, इंजी. प्रवीण ब्योहार अध्यक्ष इंस्टीटूशन ऑफ़ वैल्यूएर्स, इंजी. मनीष दुबे अध्यक्ष प्रक्टिसिंग इंजीनियर्स एसोसिएशन, इंजी. कोमलचंद जैन अध्यक्ष भारत-अफ्रीका मैत्री संघ के विशेषातिथ्य तथा श्री सुभाष मसुरहा निदेशक तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नोलॉजी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। इस अवसर पर संस्था के प्राचार्य इंजी. बी. के. साहू, सचिव श्री प्रमोद तिवारी, प्रो. इंद्र कुमार खन्ना, प्रो. शोभित वर्मा तथा अन्य प्राध्यापक गण सहभागी थे।


सरस्वती प्रतिमा तथा विश्वेश्वरैया जी के चित्र पर माल्यार्पण के पश्चात् अतिथियों का स्वागत तुलसी जी के पौधे तथा स्मृति चिह्न भेंट कर किया गया। इसके पूर्व अतिथियों ने विद्यार्थियों द्वारा निर्मित अभियांत्रिकी संरचनाओं के प्रादर्शों (मॉडल), चित्रों तथा कोलाजों का अवलोकन किया तथा उपयोगी सुझाव दिए। सरस्सं चालन करते हुए प्रो. संजय वर्मा ने अतिथियों का परिचय विद्यार्थियों से कराया। इंजी. मनीष दुबे ने जबलपुर के भूगर्भीय परिवेश की चर्चा करते हुए सिविल इंजीनियरों के लिए इसे वरदान बताया कि जबलपुर में हर परियोजना पर कार्य करते समय नए अनुभव होते हैं। इंजी. प्रवीण ब्योहार ने संरचनाओं के मूल्यांकन करने के संबंध में उपयोगी जानकारी दी। इंजी. कोमल चंद जैन ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सुदीर्घ कार्यकाल के अनुभव साझा करते हुए छात्रों को अध्ययन के प्रति गंभीर होने की सलाह दी।


मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित करते हुए अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल' ने समाज तथा शासन-प्रशासन द्वारा अभियंताओं तथा अभियांत्रिकी को पर्याप्त महत्व न दिए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए अभियान्त्रिकी शिक्षा के किताबी रूप को अलप उपयोगी बताते हुए विद्यार्थियों को कार्यस्थलियों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। संक्षिप्त प्रश्नोत्तरों की पुस्तकों के स्थान पर पाठ्यक्रम की मानक स्तरीय पुस्तकें पढ़ने की सलाह देते हुए वक्ता ने विश्वेश्वरैया जी के जीवन के प्रसंगों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अभियान और सामान्य व्यक्ति में अंतर सजगता, तत्परता और व्यावहारिकता का होता है।


अध्यक्ष श्री सुभाष मसुरहा ने अभियांत्रिकी शिक्षा की उपादेयता प्रतिपादित करते हुए, पाठ्यक्रमों को समकालिक आवश्यकताओं के अनुरूप अद्यतन किए जाने पर बल दिया। श्रेष्ठ प्रादर्श, चित्र तथा कोलाज प्रस्तुत करनेवाले छात्रों को अतिथियों द्वारा प्रमाण पत्र दिए गए।

***

अभियंता दिवस (१५ सितंबर) पर विशेष रचना:
हम अभियंता...
संजीव 'सलिल'
*
हम अभियंता!, हम अभियंता!!
मानवता के भाग्य-नियंता...
*
माटी से मूरत गढ़ते हैं,
कंकर को शंकर करते हैं.
वामन से संकल्पित पग धर,
हिमगिरि को बौना करते हैं.
नियति-नटी के शिलालेख पर
अदिख लिखा जो वह पढ़ते हैं.
असफलता का फ्रेम बनाकर,
चित्र सफलता का मढ़ते हैं.
श्रम-कोशिश दो हाथ हमारे-
फिर भविष्य की क्यों हो चिंता...
*
अनिल, अनल, भू, सलिल, गगन हम,
पंचतत्व औजार हमारे.
राष्ट्र, विश्व, मानव-उन्नति हित,
तन, मन, शक्ति, समय, धन वारे.
वर्तमान, गत-आगत नत है,
तकनीकों ने रूप निखारे.
निराकार साकार हो रहे,
अपने सपने सतत सँवारे.
साथ हमारे रहना चाहे,
भू पर उतर स्वयं भगवंता...
*
भवन, सड़क, पुल, यंत्र बनाते,
ऊसर में फसलें उपजाते.
हमीं विश्वकर्मा विधि-वंशज.
मंगल पर पद-चिन्ह बनाते.
प्रकृति-पुत्र हैं, नियति-नटी की,
आँखों से हम आँख मिलाते.
हरि सम हर हर आपद-विपदा,
गरल पचा अमृत बरसाते.
'सलिल' स्नेह नर्मदा निनादित,
ऊर्जा-पुंज अनादि-अनंता...
.***
अभियांत्रिकी:
कण जोड़ती तृण तोड़ती पथ मोड़ती अभियांत्रिकी
बढ़ती चले चढ़ती चले गढ़ती चले अभियांत्रिकी
उगती रहे पलती रहे खिलती रहे अभियांत्रिकी
रचती रहे बसती रहे सजती रहे अभियांत्रिकी।
*
तकनीक:
नवरीत भी, नवगीत भी, संगीत भी तकनीक है
कुछ प्यार है, कुछ हार है, कुछ जीत भी तकनीक है
गणना नयी, रचना नयी, अव्यतीत भी तकनीक है
श्रम-मंत्र है, नव यंत्र है, सुपुनीत भी तकनीक है
*
भारत :
यह देश भारत वर्ष है, इस पर हमें अभिमान है
कर दें सभी मिल देश का, निर्माण नव अभियान है
गुणयुक्त हो अभियांत्रिकी, शर्म-कोशिशों का गान है
परियोजन तृतीमुक्त हो, दुनिया कहे प्रतिमान है
*
(छंद: हरिगीतिका, ११२१२ X ४ = २८)
***

तकनीकी लेख
*इन्स्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स कोलकाता द्वारा पुरस्कृत द्वितीय श्रेष्ठ तकनीकी लेख*
*वैश्विकता के निकष पर भारतीय यांत्रिकी संरचनाएँ*
अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'
*
भारतीय परिवेश में अभियांत्रिकी संरचनाओं को 'वास्तु' कहा गया है। छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी प्रत्येक संरचना को अपने आपमें स्वतंत्र और पूर्ण व्यक्ति के रूप में 'वास्तु पुरुष' कहा गया है। भारतीय परंपरा प्रकृति को मातृवत पूज्य मानकर उपयोग करती है, पाश्चात्य पद्धति प्रकृति को निष्प्राण पदार्थ मानकर उसका उपभोग (दोहन-शोषण) कर और फेंक देती हैं। भारतीय यांत्रिक संरचनाओं के दो वर्ग वैदिक-पौराणिक काल की संरचनाओं और आधुनिक संरचनाओं के रूप में किये जा सकते हैं और तब उनको वैश्विक गुणवत्ता, उपयोगिता और दीर्घता के मानकों पर परखा जा सकता है।
*शिव की कालजयी अभियांत्रिकी:*
पौराणिक साहित्य में सबसे अधिक समर्थ अभियंता शिव हैं। शिव नागरिक यांत्रिकी (सिविल इंजीनियरिग), पर्यावरण यांत्रिकी, शल्य यांत्रिकी, शस्त्र यांत्रिकी, चिकित्सा यांत्रिकी, के साथ परमाण्विक यांत्रिकी में भी निष्णात हैं। वे इतने समर्थ यंत्री है कि पदार्थ और प्रकृति के मूल स्वभाव को भी परिवर्तित कर सके, प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण जनगण की सुनिश्चित मृत्यु को भी टाल सके। उन्हें मृत्युंजय और महाकाल विशेषण प्राप्त हुए।
शिव की अभियांत्रिकी का प्रथम ज्ञात नमूना ६ करोड़ से अधिक वर्ष पूर्व का है जब उन्होंने टैथीज़ महासागर के सूखने से निकली धरा पर मानव सभ्यता के प्रसार हेतु अपरिहार्य मीठे पेय जल प्राप्ति हेतु सर्वोच्च अमरकंटक पर्वत पर दुर्लभ आयुर्वेदिक औषधियों के सघन वन के बीच में अपने निवास स्थान के समीप बांस-कुञ्ज से घिरे सरोवर से प्रबल जलधार निकालकर गुजरात समुद्र तट तक प्रवाहित की जिसे आज सनातन सलिला नर्मदा के नाम से जाना जाता है। यह नर्मदा करोड़ों वर्षों से लेकर अब तक तक मानव सभ्यता केंद्र रही है। नागलोक और गोंडवाना के नाम से यह अंचल पुरातत्व और इतिहास में विख्यात रहा है। नर्मदा को शिवात्मजा, शिवतनया, शिवसुता, शिवप्रिया, शिव स्वेदोद्भवा, शिवंगिनी आदि नाम इसी सन्दर्भ में दिये गये हैं। अमरकंटक में बांस-वन से निर्गमित होने के कारण वंशलोचनी, तीव्र जलप्रवाह से उत्पन्न कलकल ध्वनि के कारण रेवा, शिलाओं को चूर्ण कर रेत बनाने-बहाने के कारण बालुकावाहिनी, सुंदरता तथा आनंद देने के कारण नर्मदा, अकाल से रक्षा करने के कारण वर्मदा, तीव्र गति से बहने के कारण क्षिप्रा, मैदान में मंथर गति के कारण मंदाकिनी, काल से बचने के कारण कालिंदी, स्वास्थ्य प्रदान कर हृष्ट-पुष्ट करने के कारण जगजननी जैसे विशेषण नर्मदा को मिले।
जीवनदायी नर्मदा पर अधिकार के लिए भीषण युद्ध हुए। नाग, ऋक्ष, देव, किन्नर, गन्धर्व, वानर, उलूक दनुज, असुर आदि अनेक सभ्यताएं सदियों तक लड़ती रहीं। अन्य कुशल परमाणुयांत्रिकीविद दैत्यराज त्रिपुर ने परमाण्विक ऊर्जा संपन्न ३ नगर 'त्रिपुरी' बनाकर नर्मदा पर कब्जा किया तो शिव ने परमाण्विक विस्फोट कर उसे नष्ट कर दिया जिससे नि:सृत ऊर्जा ने ज्वालामुखी को जन्म दिया। लावा के जमने से बनी चट्टानें लौह तत्व की अधिकता के कारण जाना हो गयी। यह स्थल लम्हेटाघाट के नाम से ख्यात है। कालांतर में चट्टानों पर धूल-मिट्टी जमने से पर्वत-पहाड़ियाँ और उनके बीच में तालाब बने। जबलपुर से ३२ किलोमीटर दूर ऐसी ही एक पहाड़ी पर ज्वालादेवी मंदिर मूलतः ऐसी ही चट्टान को पूजने से बना। जबलपुर के ५२ तालाब इसी समय बने थे जो अब नष्टप्राय हैं। टेथीज़ महासागर के पूरी तरह सूख्नने और वर्तमान भूगोल के बेबी माउंटेन कहे जानेवाले हिमालय पर्वत के बनने पर शिव ने मानसरोवर को अपना आवास बनाकर भगीरथ के माध्यम से नयी जलधारा प्रवाहित की जिसे गंगा कहा गया।
*महर्षि अगस्त्य के अभियांत्रिकी कार्य:*
महर्षि अगस्त्य अपने समय के कुशल परमाणु शक्ति विशेषज्ञ थे। विंध्याचल पर्वत की ऊँचाई और दुर्गमता उत्तर से दक्षिण जाने के मार्ग में बाधक हुई तो महर्षि ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर पर्वत को ध्वस्त कर मार्ग बनाया। साहित्यिक भाषा में इसे मानवीकरण कर पौराणिक गाथा में लिखा गया कि अपनी ऊंचाई पर गर्व कर विंध्याचल सूर्य का पथ अवरुद्ध करने लगा तो सृष्टि में अंधकार छाने लगा। देवताओं ने महर्षि अगस्त्य से समाधान हेतु प्रार्थना की। महर्षि को देखकर विंध्याचल प्रणाम करने झुका तो महर्षि ने आदेश दिया कि दक्षिण से मेरे लौटने तक ऐसे ही झुके रहना और वह आज तक झुका है।
दस्युओं द्वारा आतंक फैलाकर समुद्र में छिप जाने की घटनाएँ बढ़ने पर अगस्त्य ने परमाणु शक्ति का प्रयोग कर समुद्र का जल सुखाया और राक्षसों का संहार किया। पौराणिक कथा में कहा गया की अगस्त्य ने चुल्लू में समुद्र का जल पी लिया। राक्षसों से आर्य ऋषियों की रक्षा के लिए अगस्त्य ने नर्मदा के दक्षिण में अपना आश्रम (परमाणु अस्त्रागार तथा शोधकेन्द्र) स्थापित किया। किसी समय नर्मदा घाटी के एकछत्र सम्राट रहे डायनासौर राजसौरस नर्मदेंसिस खोज लिए जाने के बाद इस क्षेत्र की प्राचीनता और उक्त कथाएँ अंतर्संबन्धित और प्रामाणिकता होना असंदिग्ध है।
*रामकालीन अभियांत्रिकी:*
रावण द्वारा परमाण्विक शस्त्र विकसित कर देवों तथा मानवों पर अत्याचार किये जाने को सुदृढ़ दुर्ग के रूप में बनाना यांत्रिकी का अद्भुत नमूना था। रावण की सैन्य यांत्रिकी विद्या और कला अद्वितीय थी। स्वयंवर के समय राम ने शिव का एक परमाण्वास्त्र जो जनक के पास था पास था, रावण हस्तगत करना चाहता था नष्ट किया। सीताहरण में प्रयुक्त रथ जो भूमार्ग और नभमार्ग पर चल सकता था वाहन यांत्रिकी की मिसाल था। राम-रावण परमाण्विक युद्ध के समय शस्त्रों से निकले यूरेनियम-थोरियम के कारण सहस्त्रों वर्षों तक लंका दुर्दशा रही जो हिरोशिमा नागासाकी की हुई थी। श्री राम के लिये नल-नील द्वारा लगभग १३ लाख वर्ष पूर्व निर्मित रामेश्वरम सेतु अभियांत्रिकी की अनोखी मिसाल है। सुषेण वैद्य द्वारा बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का प्रयोग युद्ध अवधि में प्रतिदिन घायलों का इस तरह उपचार किया गया की वे अगले दिन पुनः युद्ध कर सके।
*कृष्णकालीन अभियांत्रिकी:*
लाक्षाग्रह, इंद्रप्रस्थ तथा द्वारिका कृष्णकाल की अद्वितीय अभियांत्रिकी संरचनाएँ हैं। सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, गांडीव धनुष आदि शस्त्र निर्माण कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। महाभारत पश्चात अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भस्थ शिशु पर प्रहार, श्रीकृष्ण द्वारा सुरक्षापूर्वक शिशु जन्म कराना बायो मेडिकल इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण है। गुजरात में समुद्रतट पर कृष्ण द्वारा बसाई गयी द्वारिका नगरी उनकी मृत्यु पश्चात जलमग्न हो गयी। २००५ से भारतीय नौसेना के सहयोग से इसके अन्वेषण का कार्य प्रगति पर है। वैज्ञानिक स्कूबा डाइविंग से इसके रहस्य जानने में लगे हैं।
*श्रेष्ठ अभियांत्रिकी के ऐतिहासिक उदाहरण 😘
श्रेष्ठ भारतीय संरचनाओं में से कुछ इतनी प्रसिद्ध हुईं कि उनका रूपांतरण कर निर्माण का श्रेय सुनियोजित प्रयास शासकों द्वारा किया गया। उनमें से कुछ निम्न निम्न हैं:
*तेजोमहालय (ताजमहल) आगरा:*
हिन्दू राजा परमार देव द्वारा ११९६ में बनवाया गया तेजोमहालय (शिव के पाँचवे रूप अग्रेश्वर महादेव नाग नाथेश्वर का उपासना गृह तथा राजा का आवास) भवन यांत्रिकी कला का अद्भुत उदाहरण है जिसे विश्व के सात आश्चर्यों में गिना जाता है।
*तेजो महालय के रेखांकन*
१०८ कमल पुष्पों तथा १०८ कलशों से सज्जित संगमरमरी जालियों से सज्जित यह भवन ४०० से अधिक कक्ष तथा तहखाने हैं। इसके गुम्बद निर्माण के समय यह व्यवस्था भी की गयी है कि बूँद-बूँद वर्षा टपकने से शिवलिंग का जलाभिषेक अपने आप होता रहे।
*विष्णु स्तम्भ (क़ुतुब मीनार) दिल्ली 😘
युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित, ​दक्षिण दिल्ली के विष्णुपद गिरि में राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक प्रख्यात ज्योतिर्विद आचार्य मिहिर की शोध तथा निवासस्थली मिहिरा अवली (महरौली) में ​दिन-रात के प्रतीक 12 त्रिभुजाका​रों - 12 कमल पत्रों ​और 27
नक्षत्रों​ के प्रतीक 27 पैवेलियनों सहित निर्मित 7 मंज़िली ​विश्व की सबसे ऊँची मीनार ​(72.7 मीटर ​, आधार व्यास 14.3 मीटर, शिखर व्यास 2.75 मीटर ,​379 सीढियाँ, निर्माण काल सन 1193 पूर्व) विष्णु ध्वज/स्तंभ (क़ुतुब मीनार) भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं के श्रेष्ठता का उदाहरण है। इस पर सनातन धर्म के देवों, मांगलिक प्रतीकों तथा संस्कृत उद्धरणों का अंकन है।
​​इन पर मुग़लकाल में समीपस्थ जैन मंदिर तोड़कर उस सामग्री से पत्थर लगाकर आयतें लिखाकर मुग़ल इमारत का रूप देने का प्रयास कुतुबुद्दीन ऐबक व इलततमिश द्वारा 1199-1368 में किया गया । निकट ही ​चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा विष्णुपद गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित गिरि पर स्थापित और विष्णु भगवान को समर्पित7 मीटर ऊंचा 6 टन वज़न का ध्रुव/गरुड़स्तंभ (लौह स्तंभ) स्तम्भ ​चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने बाल्हिक युद्ध में विजय पश्चात बनवाया। इस पर अंकित लेख में सन 1052 के राजा अंनगपाल द्वितीय का उल्लेख है।तोमर नरेश विग्रह ने इसे खड़ा करवाया जिस पर सैकड़ों वर्षों बाद भी जंग नहीं लगी। फॉस्फोरस मिश्रित लोहे से निर्मित यह स्तंभ भारतीय धात्विक यांत्रिकी की श्रेष्ठता का अनुपम उदाहरण है।आई. आई. टी. कानपूर के प्रो. बालासुब्रमण्यम के अनुसार हाइड्रोजन फॉस्फेट हाइड्रेट (FePO4-H3PO4-4H2O) जंगनिरोधी ​सतह है का निर्माण करता है।
*​जंतर मंतर : Samrat Yantra* सवाई जयसिंह द्वितीयद्वारा 1724 में दिल्ली जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में ​निर्मित जंतर मंतर प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है।यहाँ​ सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से समय और ग्रहों की स्थिति, मिस्र यंत्र वर्ष से सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन, राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र से खगोलीय पिंडों की गति जानी जा सकती ​है। इनके अतिरिक्त दिल्ली, आगरा, ग्वालियर, जयपुर, चित्तौरगढ़, गोलकुंडा आदि के किले अपनी मजबूती, उपयोगिता और श्रेष्ठता की मिसाल हैं।​
*आधुनिक अभियांत्रिकी संरचनाएँ:*
भारतीय अभियांत्रिकी संरचनाओं को शकों-हूणों और मुगलों के आक्रमणों के कारण पडी। मुगलों ने पुराने निर्माणों को बेरहमी से तोडा और किये। अंग्रेजों ने भारत को एक इकाई बनाने के साथ अपनी प्रशासनिक पकड़ बनाने के लिये किये। स्वतंत्रता के पश्चात सर मोक्षगुंडम विश्वेस्वरैया, डॉ. चन्द्रशेखर वेंकट रमण, डॉ. मेघनाद साहा आदि ने विविध परियोजनाओं को मूर्त किया। भाखरानागल, हीराकुड, नागार्जुन सागर, बरगी, सरदार सरोवर, टिहरी आदि जल परियोजनाओं ने कृषि उत्पादन से भारतीय अभियांत्रिकी को गति दी।
जबलपुर, कानपूर, तिरुचिरापल्ली, शाहजहाँपुर, इटारसी आदि में सीमा सुरक्षा बल हेतु अस्त्र-शास्त्र और सैन्य वाहन गुणवत्ता और मितव्ययिता के साथ बनाने में भारतीय संयंत्र किसी विदेशी संस्थान से पीछे नहीं हैं।
परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्माण, परिचालन और दुर्घटना नियंत्रण में भारत के प्रतिष्ठानों ने विदेशी प्रतिष्ठानों की तुलना में बेहतर काम किया है। कम सञ्चालन व्यय, अधिक रोजगार और उत्पादन के साथ कम दुर्घटनाओं ने परमाणु वैज्ञानिकों को प्रतिशत दिलाई है जिसका श्रेय डॉ. होमी जहांगीर भाभा को जाता है।
भारत की अंतरिक्ष परियोजनाएं और उपग्रह तकनालॉजी दुनिया में श्रेष्ठता, मितव्ययिता और सटीकता के लिए ख्यात हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद भारत ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं और खुद को प्रमाणित किया है। डॉ. विक्रम साराभाई का योगदान विस्मृत नहीं किया जा सकता।
भारत के अभियंता पूरी दुनिया में अपनी लगन, परिश्रम और योग्यता के लिए जाने जाते हैं । देश में प्रशासनिक सेवाओं की तुलना में वेतन, पदोन्नति, सुविधाएँ और सामाजिक प्रतिष्ठा अत्यल्प होने के बावजूद भारतीय अभियांत्रिकी परियोजनाओं ने कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
अग्निपुरुष डॉ. कलाम के नेतृत्व में भारतीय मिसाइल अभियांत्रिकी की विश्व्यापी ख्याति प्राप्त की है।
सारत: भारत की महत्वकांक्षी अभियांत्रिकी संरचनाएँ मेट्रो ट्रैन, दक्षिण रेल, वैष्णव देवी रेल परियोजना हो या बुलेट ट्रैन की भावी योजना,राष्ट्रीय राजमार्ग चतुर्भुज हो या नदियों को जोड़ने की योजना भारतीय अभियंताओं ने हर चुनौती को स्वीकारा है। विश्व के किसी भी देश की तुलना में भारतीय संरचनाएँ और परियोजनाएं श्रेष्ठ सिद्ध हुई हैं।
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संपर्क: अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल', विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर, ४८२००१.
ई मेल: salil.sanjiv@gmail.com, चलभाष ९४२५१८३२४४, ७९९९५५९६१८।
मुक्तक
नित्य प्रात हो जन्म, सूर्य सम कर्म करें निष्काम भाव से।
संध्या पा संतोष रात्रि में, हो विराम नित नए चाव से।।
आस-प्रयास-हास सँग पग-पग, लक्ष्य श्वास सम हो अभिन्न ही -
मोह न व्यापे, अहं न घेरे, साधु हो सकें प्रिय! स्वभाव से।।
***
दोहे
सलिल न बन्धन बाँधता, बहकर देता खोल।
चाहे चुप रह समझिए, चाहे पीटें ढोल।।
*
अंजुरी भर ले अधर से, लगा बुझा ले प्यास।
मन चाहे पैरों कुचल, युग पा ले संत्रास।।
*
उठे, बरस, बह फिर उठे, यही 'सलिल' की रीत।
दंभ-द्वेष से दूर दे, विमल प्रीत को प्रीत।।
*
स्नेह संतुलन साधकर, 'सलिल' धरा को सींच।
बह जाता निज राह पर, सुख से आँखें मींच।।
*
क्या पहले क्या बाद में, घुली कुँए में भंग।
गाँव पिए मदमस्त है, कर अपनों से जंग।।
*
जो अव्यक्त है, उसी से, बनता है साहित्य।
व्यक्त करे सत-शिव तभी, सुंदर का प्रागट्य।।
*
नमन नलिनि को कीजिए, विजय आप हो साथ।
'सलिल' प्रवह सब जगत में, ऊँचा रखकर माथ।।
*
हर रेखा विश्वास की, शक-सेना की हार।
सक्सेना विजयी रहे, बाँट स्नेह-सत्कार।
१५-९-२०१६
*

Saturday 28 September, 2013

national conference: Power plant chutka

Invitation and Information: 

Two Day National Conference 

“Geotechnical and Seismo-tectonic Framework around Nuclear Power Plant at Chutka Near Jablapur" 21-22 Nov, 2013



Dear All, 
The Global Nature Care Sangathan's Group of Institutions, Faculty of Engineering and Management, Jabalpur will be organizing a Two Day National Conference on Geotechnical and Seismo-tectonic Framework around Proposed Nuclear Power Plant at Chutka near Jabalpur" on 21-22 Nov. 2013.
A Nuclear Power Plants has been planned at CHUTKA, MANDLA district near Jabalpur M.P. to generate 1400Mw power.  While this is a welcome decision by government of India but due to general lack of understanding and information, fear has gripped general public around CHUTKA and nearby areas of the tribal dominated Mandla, District in M.P.  more after the nuclear disaster at Fukushima in Japan. To alley such fears and generate a favorable and positive opinion about the usefulness of nuclear energy, Global Group of Institution, a premier engineering institute of Jabalpur is planning to organize a Two days National Conference on "Geotechnical and Seismo-tectonic Framework around Nuclear Power Plant at Chutka Near Jabalpur" 21-22Nov, 2013.

For making this Conference a grand successes we invite you and solicit your kind co-operation in the form of your research papers, participation, sponsorship, grant for this activity. Please arrange to publicise this activity among all the interested.

Thanking you.

Prof. Dr. Rajiv Khatri
Member IGS Jabalpur Chapter
Director
Global Nature Care Sangathan's Group of Institutions,
Faculty of Engineering and Management,
Jabalpur M.P.

Wednesday 26 October, 2011

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II ( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

 II  ॐ II

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

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Acharya Sanjiv Salil

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Sunday 20 February, 2011

: साहित्य समाचार: मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् : २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन जबलपुर, २०-२-२०११



: साहित्य समाचार:
मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् : २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन
    जबलपुर, २०-२-२०११, 
अरिहंत होटल, रसल चौक, जबलपुर

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' व अन्य लघुकथाकार सम्मानित होंगे

जबलपुर. लघुकथा के क्षेत्र में सतत सक्रिय रचनाकारों कर अवदान को प्रति वर्ष सम्मानित करने हेतु प्रसिद्ध संस्था मध्य प्रदेश लघु कथाकार परिषद् का २६ वाँ वार्षिक सम्मेलन अरिहंत होटल, रसल चौक, जबलपुर में २०-२-२०११ को अपरान्ह १ बजे से आमंत्रित है.

परिषद् के अध्यक्ष मो. मोइनुद्दीन 'अतहर' तथा सचिव कुँवर प्रेमिल द्वारा प्रसरित विज्ञप्ति के अनुसार इस वर्ष ७ लघुकथाकारों को उनके उल्लेखनीय अवदान हेतु सम्मानित किया जा रहा है.

ब्रिजबिहारीलाल श्रीवास्तव सम्मान - श्री संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर.
सरस्वती पुत्र सम्मान -                   श्री पारस दासोत जयपुर.
रासबिहारी पाण्डेय सम्मान -           श्री अनिल अनवर, जोधपुर.
डॉ. श्रीराम ठाकुर दादा सम्मान -      श्री अशफाक कादरी बीकानेर.
जगन्नाथ कुमार दास सम्मान-        श्री डॉ. वीरेन्द्र कुमार दुबे, जबलपुर.
गोपालदास सम्मान -                     डॉ. राजकुमारी शर्मा 'राज', गाज़ियाबाद.
आनंदमोहन अवस्थी सम्मान-         डॉ. के बी. श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर- मो. मोइनुद्दीन 'अतहर', जबलपुर.

कार्यक्रम प्रो. डॉ. हरिराज सिंह 'नूर' पूर्व कुलपति इलाहाबाद विश्वविद्यालय की अध्यक्षता, प्रो. डॉ. जे. पी. शुक्ल पूर्व कुलपति रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के मुख्यातिथ्य तथा श्री राकेश 'भ्रमर', श्री अंशलाल पंद्रे व श्री निशिकांत चौधरी के विशेषातिथ्य में संपन्न होगा.

इस अवसर पर मो. मोइनुद्दीन 'अतहर' द्वारा सम्पादित परिषद् की लघुकथा केन्द्रित पत्रिका अभिव्यक्ति के जनवरी-मार्च २०११ अंक, श्री कुँवर प्रेमिल द्वारा सम्पादित प्रतिनिधि लघुकथाएँ २०११  तथा श्री मनोहर शर्मा 'माया' लिखित लघुकथाओं के संग्रह मकड़जाल का विमोचन संपन्न होगा.

द्वितीय सत्र में डॉ. तनूजा चौधरी व डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र' लघु कथा के अवदान, चुनौती और भविष्य विषय पर विचार अभिव्यक्ति करेंगे.
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Tuesday 28 December, 2010

national conference on 'Advances in Geotechnical Engineering, Concrete & Masonry Construction

     INDIAN GEOTECHNICAL SOCIETY JABALPUR CHAPTER JABALPUR 482001
     Two day National conference On 
''Advances In Geotechnical Engineering, Concrete & Masonry Construction''


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Wednesday 5 May, 2010

FNGINEERS Vs DOCTORS

doctors vs engineers

7 Engineers and 7 Doctors are going from PUNE to Mumbai. So both groups gather at Pune Station. 
Both groups are desperately trying to prove theirsuperiority . 
SCENE 1 (PUNE- MUMBAI): 

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7 engineers take only 1 Ticket and 7 doctors buy all 7 tickets..
 
Doctors are desperately waiting for TC to come......
 
When TC arrives,
 
All 7 Engineers get in one toilet so when TC knocks, one hand come out with the ticket and the TC goes  Away.....
 NOW on return Journey All of them don't get a direct Train to PUNE. So they all decide to take a Passenger till Lonavala, from there they can easily get a LOCAL to PUNE 
SCENE 2 (MUMBAI - LONAVALA):
 
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Doctors decided, "this time we will prove that we too are equal"....All 7 Doctors take 1 Ticket Engineers don't buy any ticket at all!!!!!.. TC arrives....
  ALL DOCTORS IN ONE TOILET.ALL ENGINEERS IN THE OPPOSITE. One engineer gets out and knocks the door of Doctors toilet, One hand comes with the tickets, he takes the
ticket and comes in Engg. Bathroo! m... TC DRIVES out ALL the doctors from the toilet and they are 
heavily fined. 
SCENE 3 ( LONAVALA): 

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SO now both the group r on LONAVALA station. Doctors planning their move for last chance, they board the local to Pune. This time doctors decide that they will play the same (1 ticket) trick.
ALL Doctors take 1 tickets...Engineers BUY all 7 tickets this time...
 
SO TC Comes.. All Engineers showed their tickets ............ ....... ..... 
Doctors are still searching for toilet in the LOCAL train....... .... 
Conclusion:
 Technically intelligent people are genius, don't mess with Engineers. 

Thursday 22 April, 2010

कुण्डलिनी: संजीव 'सलिल'

कुण्डलिनी:

संजीव 'सलिल'

हिन्दी की जय बोलिए, हो हिन्दीमय आप.
हिन्दी में पढ़-लिख 'सलिल', सकें विश्व में व्याप्त..
नेह नर्मदा में नहा, निर्भय होकर डोल.
दिग-दिगंत को गुँजा दे, जी भर हिन्दी बोल..
जन-गण की आवाज़ है, भारत मान ता ताज.
हिन्दी नित बोले 'सलिल', माँ को होता नाज़..
Acharya Sanjiv Salil

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Friday 5 March, 2010

मुक्तक / चौपदे: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

मुक्तक / चौपदे

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / संजिव्सलिल.ब्लॉग.सीओ.इन
सलिल.संजीव@जीमेल.com
 
साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है.
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है.
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर.
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है. 
 
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 ll नव शक संवत, आदिशक्ति का, करिए शत-शत वन्दन ll
 ll श्रम-सीकर का भारत भू को, करिए अर्पित चन्दन ll
 ll   नेह नर्मदा अवगाहन कर, सत-शिव-सुन्दर ध्यायें ll
 ll सत-चित-आनंद श्वास-श्वास जी, स्वर्ग धरा पर लायें ll
                              ****************
 
दिल को दिल ने जब पुकारा, दिल तड़प कर रह गया.
दिल को दिल का था सहारा, दिल न कुछ कह कह गया.
दिल ने दिल पर रखा पत्थर, दिल से आँखे फेर लीं-
दिल ने दिल से दिल लगाया, दिल्लगी दिल सह गया.
 
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कर न बेगाना मुझे तू, रुसवा ख़ुद हो जाएगा.
जिस्म में से जाँ गयी तो बाकी क्या रह जाएगा?
बन समंदर तभी तो दुनिया को कुछ दे पायेगा-
पत्थरों पर 'सलिल' गिरकर व्यर्थ ही बह जाएगा.
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कौन किसी का है दुनिया में. आना-जाना खाली हाथ.
इस दरवाजे पर मय्यत है उस दरवाजे पर बारात.
सुख-दुःख धूप-छाँव दोनों में साज और सुर मौन न हो-
दिल से दिल तक जो जा पाये 'सलिल' वही सच्चे नगमात.
 
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हमने ख़ुद से करी अदावत, दुनिया से सच बोल दिया.
दोस्त बन गए दुश्मन पल में, अमृत में विष घोल दिया.
संत फकीर पादरी नेता, थे नाराज तो फ़िक्र न थी-
'सलिल' अवाम आम ने क्यों काँटों से हमको तोल दिया?
  
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मुंबई पर दावा करते थे, बम फूटे तो कहाँ गए?
उसी मांद में छुपे रहो तुम, मुंह काला कर जहाँ गए.
दिल पर राज न कर पाए, हम देश न तुमको सौंपेंगे-
नफरत  फैलानेवालों  को  हम  पैरों  से  रौंदेंगे.
 
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Tuesday 26 January, 2010

गणतंत्र दिवस पर विशेष गीत:

सारा का सारा हिंदी है

आचार्य संजीव 'सलिल'

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जो कुछ भी इस देश में है, सारा का सारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

मणिपुरी, कथकली, भरतनाट्यम, कुचपुडी, गरबा अपना है.

लेजिम, भंगड़ा, राई, डांडिया हर नूपुर का सपना है.

गंगा, यमुना, कावेरी, नर्मदा, चनाब, सोन, चम्बल,

ब्रम्हपुत्र, झेलम, रावी अठखेली करती हैं प्रति पल.

लहर-लहर जयगान गुंजाये, हिंद में है और हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजा सबमें प्रभु एक समान.

प्यार लुटाओ जितना, उतना पाओ औरों से सम्मान.

स्नेह-सलिल में नित्य नहाकर, निर्माणों के दीप जलाकर.

बाधा, संकट, संघर्षों को गले लगाओ नित मुस्काकर.

पवन, वन्हि, जल, थल, नभ पावन, कण-कण तीरथ, हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


जै-जैवन्ती, भीमपलासी, मालकौंस, ठुमरी, गांधार.

गजल, गीत, कविता, छंदों से छलक रहा है प्यार अपार.

अरावली, सतपुडा, हिमालय, मैकल, विन्ध्य, उत्तुंग शिखर.

ठहरे-ठहरे गाँव हमारे, आपाधापी लिए शहर.

कुटी, महल, अँगना, चौबारा, हर घर-द्वारा हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

सरसों, मका, बाजरा, चाँवल, गेहूँ, अरहर, मूँग, चना.

झुका किसी का मस्तक नीचे, 'सलिल' किसी का शीश तना.

कीर्तन, प्रेयर, सबद, प्रार्थना, बाईबिल, गीता, ग्रंथ, कुरान.

गौतम, गाँधी, नानक, अकबर, महावीर, शिव, राम महान.

रास कृष्ण का, तांडव शिव का, लास्य-हास्य सब हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....


ट्राम्बे, भाखरा, भेल, भिलाई, हरिकोटा, पोकरण रतन.

आर्यभट्ट, एपल, रोहिणी के पीछे अगणित छिपे जतन.

शिवा, प्रताप, सुभाष, भगत, रैदास कबीरा, मीरा, सूर.

तुलसी. चिश्ती, नामदेव, रामानुज लाये खुदाई नूर.

रमण, रवींद्र, विनोबा, नेहरु, जयप्रकाश भी हिंदी है.

हर हिंदी भारत माँ के माथे की उज्जवल बिंदी है....

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Acharya Sanjiv Salil

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Sunday 3 January, 2010

भूकम्प की भविष्यवाणी : नये अध्ययन ---इंजी. विवेकरंजन श्रीवास्तव


भूकम्प की भविष्यवाणी : नये अध्ययन




इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव



लेखक फाउण्डेशन इंजीनियरिंग में पोस्टग्रेडुएट हैं .


भूकम्प सदियों से पृथ्वी पर विनाशलीला रचाते आए हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके आगे हम बेबस है, क्योंकि भूकम्प के पूर्वानुमान का कोई प्रभावी तरीका अब तक नहीं खोजा जा सका है। विश्वभर में वैज्ञानिक ऐसा कोई तरीका ढूँढने का प्रयास करते रहे हैं। इसी दिशा में नवीनतम अनुसंधान , निम्नानुसार धरती की सतह से कोई ४० कि.मी. नीचे होने वाले खामोश भूकम्पों के प्रभावो के अध्ययन तथा दूसरा प्रयोग समुद्र तटीय भूकम्पों की भविष्यवाणी हेतु समुद्र के पानी में क्लोरोफिल की मात्रा के सूक्ष्म अध्ययन पर आधारित है .


'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचाने


अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय तथा जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक दल ने 'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचानने के तरीके पर काम किया। 'खामोश भूकम्प' ऐसे कम्पन को कहते हैं, जो धरती की सतह से ४० किमी. नीचे तक होते हैं और कई सप्ताहों तक लगातार चलते रहते है। हालांकि ये कंपन कोई विशेष हानि नहीं करते लेकिन भूकम्प शास्त्रियों का मानना है कि ये सतह पर आने वाले बड़े भूकम्पों की पूर्व सूचना होते हैं। अर्थात् यदि खामोश भूकम्प आ रहा है तो इसके बाद सतह पर भी भूकम्प आएगा। समस्या यह है कि इन खामोश भूकम्पों को धरती की सतह पर तो महसूस किया नहीं जाता, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर भी इन्हें दर्ज होने में काफी समय लगता है। तो समय रहने इनका पता कैसे लगाया जाए ?


अब अमेरीकी व जापानी शोधकर्ताओं ने एक तरीका खोज निकालने का दावा किया है। उन्होंने पाया कि खामोश भूकम्प के फलस्वरुप गैर ज्वालामुखीय कम्पन शुरु हो जाता है। खामोश भूकम्प तो जाँच उपकरणों की पकड़ में नहीं आते लेकिन गैर ज्वालामुखीय कंपनों को संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। गैर ज्वालामुखीय कंपन उन हल्के कम्पनों को कहते हैं, जो सक्रिय 'फॉल्ट जोन' में काफी गहराई में उत्पन्न होते हैं। खामोश भूकम्प बड़े भूकम्प की चेतावनी देते हैं लेकिन खामोश भूकम्पों को हमारे यंत्र पकड़ नहीं पाते। खामोश भूकम्प गैर ज्वालामुखीय कम्पनों को जन्म देते हैं, जो हमारे संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। तो इन गैर ज्वालामुखीय कम्पनों का पता करके हम भूकम्प की भविष्यवाणी कर सकते हैं।


उक्त शोध से जुड़े ग्रेगरी बेरोजा के अनुसार - 'फॉल्ट जोन में तापमान व दाब बढ़ने पर धरती की प्लेट में मौजूद खनिज अधिक घनत्व के साथ आपस में जुड़ जाते हैं और पानी छोड़ने लगते हैं। पानी छूटने से हल्के कंपन शुरु हो जाते हैं। साथ ही इससे प्लेटों के बीच कुछ चिकनाई उत्पन्न हो जाती है। इससे प्लेटों का आपस में रगड़ना सुगम हो जाता है और खामोश भूकम्प आने लगता है। फॉल्ट में पहले से मौजूद तनाव इन खामोश भूकम्पों के कारण बढ़ जाता है। जब यह तनाव एक सीमा से बढ़ जाता है, तो बड़ा भूकम्प आता है, जो धरती की सतह पर विनाशलीला कर जाता है।' इस अध्ययन से उम्मीद है कि निकट भविष्य में भूकम्प का सटीक पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो जाए और माल की न सही, जान की हिफाजत बड़े पैमाने पर की जा सकेगी ।


समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा का अध्ययन


भूकम्प पर ही एक अध्ययन भारतीय व अमेरिकी शोधकर्ताओं के दल ने किया है । इन्होंने पाया कि समुद्री किनारों पर पानी में क्लोरोफिल की मात्रा की वृद्धि पर नजर रखकर समुद्री किनारों पर आने वाले भूकम्प का अनुमान लगाया जा सकता है।समुद्र के धरातल में भूकम्पीय गतिविधियो या ज्वालामुखीय घटनाओ से समुद्र की सतह से पानी का वाष्पीकरण बढ़ जाता है। जब सतह पर वाष्पीकरण अधिक होता है, तो गहराई वाला ठंडा पानी उठकर सतह की ओर बढ़ता है। तापीय उर्जा के कारण वाष्पीकरण बढ़ने पर ,तथा समुद्र की तलहटी में ज्वालामुखीय घटनाओ से पानी का ऊपर की ओर उठने का सिलसिला भी बढ़ जाता है। यह ऊपर उठने वाला पानी ऐसे पोषक तत्व से भरपूर होता है, जिनसे फायटोफ्लैंक्टन (सुक्ष्म समुद्री पौधे) पोषण ग्रहण कर बढ़ते हैं। ये पौधे क्लोरोफिल द्वारा सूर्य से उर्जा ग्रहण कर अपना भोजन तैयार करते हैं।इस तरह समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा अचानक बढ़ जाती है . क्लोरोफिल की उपस्थिति उपग्रह से प्राप्त चित्रों में भी देखी जा सकती है , इस तरह समुद्री जल सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा की गणना के अध्ययन से भी भूकम्प , सुनामी की भविष्यवाणी करने की संभावना है.

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