भूकम्प की भविष्यवाणी : नये अध्ययन
इंजी. विवेक रंजन श्रीवास्तव
लेखक फाउण्डेशन इंजीनियरिंग में पोस्टग्रेडुएट हैं .
भूकम्प सदियों से पृथ्वी पर विनाशलीला रचाते आए हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इनके आगे हम बेबस है, क्योंकि भूकम्प के पूर्वानुमान का कोई प्रभावी तरीका अब तक नहीं खोजा जा सका है। विश्वभर में वैज्ञानिक ऐसा कोई तरीका ढूँढने का प्रयास करते रहे हैं। इसी दिशा में नवीनतम अनुसंधान , निम्नानुसार धरती की सतह से कोई ४० कि.मी. नीचे होने वाले खामोश भूकम्पों के प्रभावो के अध्ययन तथा दूसरा प्रयोग समुद्र तटीय भूकम्पों की भविष्यवाणी हेतु समुद्र के पानी में क्लोरोफिल की मात्रा के सूक्ष्म अध्ययन पर आधारित है .
'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचाने
अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय तथा जापान के टोक्यो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक दल ने 'खामोश भूकम्पों' को समय रहते पहचानने के तरीके पर काम किया। 'खामोश भूकम्प' ऐसे कम्पन को कहते हैं, जो धरती की सतह से ४० किमी. नीचे तक होते हैं और कई सप्ताहों तक लगातार चलते रहते है। हालांकि ये कंपन कोई विशेष हानि नहीं करते लेकिन भूकम्प शास्त्रियों का मानना है कि ये सतह पर आने वाले बड़े भूकम्पों की पूर्व सूचना होते हैं। अर्थात् यदि खामोश भूकम्प आ रहा है तो इसके बाद सतह पर भी भूकम्प आएगा। समस्या यह है कि इन खामोश भूकम्पों को धरती की सतह पर तो महसूस किया नहीं जाता, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम पर भी इन्हें दर्ज होने में काफी समय लगता है। तो समय रहने इनका पता कैसे लगाया जाए ?
अब अमेरीकी व जापानी शोधकर्ताओं ने एक तरीका खोज निकालने का दावा किया है। उन्होंने पाया कि खामोश भूकम्प के फलस्वरुप गैर ज्वालामुखीय कम्पन शुरु हो जाता है। खामोश भूकम्प तो जाँच उपकरणों की पकड़ में नहीं आते लेकिन गैर ज्वालामुखीय कंपनों को संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। गैर ज्वालामुखीय कंपन उन हल्के कम्पनों को कहते हैं, जो सक्रिय 'फॉल्ट जोन' में काफी गहराई में उत्पन्न होते हैं। खामोश भूकम्प बड़े भूकम्प की चेतावनी देते हैं लेकिन खामोश भूकम्पों को हमारे यंत्र पकड़ नहीं पाते। खामोश भूकम्प गैर ज्वालामुखीय कम्पनों को जन्म देते हैं, जो हमारे संवेदनशील यंत्र पकड़ लेते हैं। तो इन गैर ज्वालामुखीय कम्पनों का पता करके हम भूकम्प की भविष्यवाणी कर सकते हैं।
उक्त शोध से जुड़े ग्रेगरी बेरोजा के अनुसार - 'फॉल्ट जोन में तापमान व दाब बढ़ने पर धरती की प्लेट में मौजूद खनिज अधिक घनत्व के साथ आपस में जुड़ जाते हैं और पानी छोड़ने लगते हैं। पानी छूटने से हल्के कंपन शुरु हो जाते हैं। साथ ही इससे प्लेटों के बीच कुछ चिकनाई उत्पन्न हो जाती है। इससे प्लेटों का आपस में रगड़ना सुगम हो जाता है और खामोश भूकम्प आने लगता है। फॉल्ट में पहले से मौजूद तनाव इन खामोश भूकम्पों के कारण बढ़ जाता है। जब यह तनाव एक सीमा से बढ़ जाता है, तो बड़ा भूकम्प आता है, जो धरती की सतह पर विनाशलीला कर जाता है।' इस अध्ययन से उम्मीद है कि निकट भविष्य में भूकम्प का सटीक पूर्वानुमान लगाना सम्भव हो जाए और माल की न सही, जान की हिफाजत बड़े पैमाने पर की जा सकेगी ।
समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा का अध्ययन
भूकम्प पर ही एक अध्ययन भारतीय व अमेरिकी शोधकर्ताओं के दल ने किया है । इन्होंने पाया कि समुद्री किनारों पर पानी में क्लोरोफिल की मात्रा की वृद्धि पर नजर रखकर समुद्री किनारों पर आने वाले भूकम्प का अनुमान लगाया जा सकता है।समुद्र के धरातल में भूकम्पीय गतिविधियो या ज्वालामुखीय घटनाओ से समुद्र की सतह से पानी का वाष्पीकरण बढ़ जाता है। जब सतह पर वाष्पीकरण अधिक होता है, तो गहराई वाला ठंडा पानी उठकर सतह की ओर बढ़ता है। तापीय उर्जा के कारण वाष्पीकरण बढ़ने पर ,तथा समुद्र की तलहटी में ज्वालामुखीय घटनाओ से पानी का ऊपर की ओर उठने का सिलसिला भी बढ़ जाता है। यह ऊपर उठने वाला पानी ऐसे पोषक तत्व से भरपूर होता है, जिनसे फायटोफ्लैंक्टन (सुक्ष्म समुद्री पौधे) पोषण ग्रहण कर बढ़ते हैं। ये पौधे क्लोरोफिल द्वारा सूर्य से उर्जा ग्रहण कर अपना भोजन तैयार करते हैं।इस तरह समुद्र की सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा अचानक बढ़ जाती है . क्लोरोफिल की उपस्थिति उपग्रह से प्राप्त चित्रों में भी देखी जा सकती है , इस तरह समुद्री जल सतह पर क्लोरोफिल की मात्रा की गणना के अध्ययन से भी भूकम्प , सुनामी की भविष्यवाणी करने की संभावना है.
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